राजनीति ने कैसे टीपू सुल्तान को राष्ट्रीय नायक से एक विवादास्पद व्यक्ति बनाकर रख दिया।


कर्नाटक की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक राजधानी मैसूर मे तीपू सुल्तान को एक बहादुर राजा के रूप मे जाना जाता है
 आज तक दक्षिण कर्नाटक के हर घर में अपने बच्चो को तीपू सुल्तान कहकर सम्बोधित करना आम बात थी जिसने अपनी पूरी तकत से अंग्रेजी हुकूमत से सामना किया। कोडागु क्षेत्र के लोगों को भले ही टीपू सुल्तान द्वारा कोडवा समुदाय के सदस्यों के नरसंहार पर आपत्ति थी, लेकिन कड़वाहट कभी भी सड़कों पर नहीं उतरी। 

समकालीन शासकों के विपरीत, टीपू सुल्तान ने ब्रिटिश सेना को कुचलने के लिए मैसूर मे रॉकेट जैसे आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया। रॉकेट तकनीक बैंगलोर टॉरपीडो की खोज के लिए मूल प्रेरणा थी, जिसका प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया था।

टीपू सुल्तान ने नेपोलियन बोनापार्ट के साथ ब्रिटिश विरोधी गठबंधन बनाने की भी कोशिश की। ऐतिहासिक साक्ष्यों ने अंग्रेजों के खिलाफ देश की आजादी के संघर्ष में टीपू सुल्तान का एक विशेष स्थान बताया है।

सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती मनाने का फैसला किया था जिसने राजनीतिक मोड़ ले लिया। उस समय विपक्ष में रही भाजपा ने इस फैसले के खिलाफ रैली की थी और कांग्रेस को चुनौती दी थी कि वह समारोह नहीं होने देगी।

2019 में भाजपा सरकार सत्ता में आई, तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने घोषणा की कि टीपू जयंती नहीं मनाई जाएगी, हालांकि पूरे कर्नाटक में टीपू जयंती धूमधाम से मनाई गई। इसी बीच कोडागु में, बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और एक भाजपा कार्यकर्ता की मौत हो गई।

टीपू सुल्तान एक अत्याचारी, एक धार्मिक कट्टरपंथी था, जिसने सभी हिंदुओं को इस्लाम में परिवर्तित करने की कोशिश की इसपर कड़वी बहस शुरू हुई। भाजपा नेताओं ने टीपू सुल्तान द्वारा लिखे गए पत्रों का हवाला देते हुए बताया कि कैसे उन्होंने केरल के मालाबार क्षेत्र में हिंदुओं को पकड़कर इस्लाम में परिवर्तित किया था। जबकि कांग्रेस और प्रगतिशील नेताओं ने उदाहरण दिया कि कैसे टीपू सुल्तान ने मंदिरों में योगदान दिया और श्रृंगेरी मठ को मराठों के हमले से बचाया था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि टीपू सुल्तान के महल के करीब स्थित रंगनाथ स्वामी का मंदिर सही सलामत रहने मे कामयाब रहा।

मैसूर-कोडागु से भाजपा के लोकसभा सांसद प्रताप सिम्हा का कहना है कि टीपू सुल्तान को गलत तरीके से मैसूर के बाघ के रूप में व्याख्यायित किया जाता है। "उन्होंने कभी युद्ध नहीं लड़ा और किले के अंदर ही मर गए। टीपू सुल्तान धर्म परिवर्तन में लिप्त थे और उन्होंने हिंदुओं के साथ क्रूरता का व्यवहार किया।"

"उनकी सेना काफी हद तक शूद्रों से बनी थी। जब शंकराचार्य द्वारा स्थापित प्रसिद्ध श्रृंगेरी मठ पर मराठा सेना ने आक्रमण किया, तो उन्होंने पवित्र मूर्ति को फिर से स्थापित करने और मठ में पूजा की परंपरा को बहाल करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए एक फरमान जारी किया।

नंजनगुड में प्रसिद्ध श्रीकांतेश्वर मंदिर मे उनका दान; कांची मे मंदिर के काम को पूरा करने के लिए 10,000 सोने के सिक्कों का दान; मेलकोट मंदिर में पुजारियों के दो संप्रदायों के बीच विवादों को सुलझाना; और कलाले में लक्ष्मीकांत मंदिर को उपहार सभी प्रसिद्ध हैं।

इतिहासकारों ने राजनीतिक मजबूरियों मे टीपू सुल्तान की 'सांप्रदायिक विचारधारा' में तब्दील कर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

शिक्षा मंत्री बी.सी. नागेश ने कहा है कि टीपू सुल्तान को 'मैसूर के बाघ' के रूप में संदर्भित किया जाता रहा है, टीपू सुल्तान पर सामग्री स्कूल के पाठ्यक्रम में बनी रहेगी।

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The Muslim Today

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